बिहार में लोग इतना मछली खाते हैं कि 800 करोड़ की मछली दुसरे राज्य से खरीदना पड़ता है।
बिहार में हर साल 800 करोड़ रुपए की मछली पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश से आती है। जबकी कृषि रोडमैप 2012-17 में ही राज्य को मछली उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य रखा गया था।
पूरा नहीं होने पर फिर 2017-22 में लक्ष्य लिया गया कि आत्मनिर्भरता के साथ ही हम निर्यात भी करेंगे। लेकिन लक्ष्य से अभी भी बिहार लगभग 64 हजार टन पीछे हैं। 2021-22 में राज्य में 95 हजार हेक्टेयर में मछली का उत्पादन 7.61 लाख टन हुआ। यह 2020-21 की तुलना में 78 हजार टन अधिक है।
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बिहार में मछली की सालाना खपत लगभग 8.25 लाख टन है। यानी अभी भी खपत और उत्पादन में अंतर 64 हजार टन है। सालाना लगभग अभी भी 800 करोड़ से अधिक की मछलियां दूसरे राज्यों में मंगाई जा रही हैं। बिहार में सालाना लगभग 8 हजार करोड़ का मछली का कारोबार होता है। हालांकि पिछले 10 सालों में मछली उत्पादन में दोगुना से अधिक वृद्धि हुई है। लेकिन लगातार खपत में भी वृद्धि हो रही है।
तारकिशोर प्रसाद, उपमुख्यमंत्री ने मिडिया को बताया की,बिहार में लगातार मछली उत्पादन बढ़ रहा है। यह अच्छा संकेत है। इससे राज्य के मछली उत्पादकों को लाभ हो रहा है। मछली उत्पादन बढ़ाने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। इससे रोजगार के अवसर भी बढ़े हैं।
ऋषिकेश कश्यप, कॉफ्फेड के प्रबंध निदेशक ने मिडिया को बताया की,रोजाना औसतन 20 से 22 करोड़ की मछलियां पश्चिम बंगाल और आंध्रप्रदेश से बिहार आती हैं। इससे लगभग सालाना 800 करोड़ से अधिक राशि दूसरे प्रदेशों में चली जाती है। बिहार में मछली उत्पादन बढ़े तो किसानों और मछुआरों की आय बढ़ने के साथ ही रोजगार भी बढ़ेगा।