सिंगरौली

सिंगरौली : कोल डस्ट की परत सड़कों से लेकर घरों कार्यालयों में

By - शशिकांत कुशवाहा

Story Highlights
  • कोल डस्ट की परत सड़कों से लेकर घरों कार्यालयों में
  • नही हो रहा मापदंडों का पालन
  • कागजों पर हो रहा प्रदूषण नियंत्रण
  • प्रदूषण नियंत्रण कार्यालय कुम्भकर्णीय निद्रा में,लगातार बढ़ते प्रदूषण बना चर्चा का विषय 

सिंगरौली: ऊर्जा धानी सिंगरौली में तेजी से बढ़ते औद्योगिकीकरण में लगातार जिले में प्रदूषण के आंकड़ों में भी वृद्धि साफ तौर पर देखी जा सकती है भले ही प्रदूषण के कई मापदंड पहले से निर्धारित किए गए हैं। परंतु उन सभी मापदंडों को दरकिनार कर यहां पर लगातार प्रदूषण के आंकड़ों में वृद्धि हुई है। जिसका प्रमाण एनजीटी NGT एवं सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के रूप में साफ तौर पर देखा जा सकता है। वही हम बात करें सिंगरौली जिले में स्थित क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण कार्यालय की स्थापना होते हुए भी आखिरकार दुष्प्रभाव वाले कारकों की वृद्धि बड़े पैमाने पर हुई है। प्रदूषण की यह कारक नग्न आंखों से लेकर धूल की मोटी परत के रूप में घरों पर भी साफ दिखाई देती है।

कोल डस्ट की परत सड़कों से लेकर घरों कार्यालयों में

सिंगरौली क्षेत्र में कई स्थान ऐसे हैं जहां पर कोयले की डस्ट सड़कों से लेकर कार्यालयों व आम आदमी के घरों की छतों पर साफ तौर पर दिखाई देती है। और यह कोल डस्ट जहाँ लोगों के घर की छतों और सिंगरौली वासियों के छाती के साथ साथ चाक चौराहे व सडक़ के किनारे हर किसी को दिख रही है। पर जिम्मेदार क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी सहित जिले के प्रशासनिक अधिकारियों को बिल्कुल भी दिखाई नहीं नहीं देती। अब यह बात तो और है कि इस पूरे मामले पर अधिकारी देखकर नजरअंदाज करते हैं या उस पर कार्रवाई करते हैं यह तो उनकी मंशा को स्पष्ट करता है। परंतु वहीं दूसरी तरफ एक बात तो साफ है कि लगातार बढ़ रहे प्रदूषण के कारण सिंगरौली की जनता त्रस्त दिखाई दे रही है।

नही हो रहा मापदंडों का पालन

प्रदूषण नियंत्रण को लेकर भारत सरकार की तरफ से जारी गाइडलाइन में प्रदूषक तत्वों के नियंत्रण को लेकर वाकायदा मापदंड निर्धारित किये गए हैं। वायु की शुद्धता माप के लिए एंबिएंट एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग के सैम्पलर बफर जोन में आज तक न दिखना इस बात का प्रमाण है कि सैंपलिंग मात्र कागजों तक ही सिमट कर रह गई है। इसके अलावा कंपनियों से छोड़े जा रहे दूषित जल को बिना ईटीपी प्लांट की प्रक्रिया से गुजारे हुए ही जल स्त्रोतों में बेधड़क छोड़ा जा रहा। जिससे कि जल स्त्रोत भी प्रदूषित हो रहे हैं। और कंपनियों की यह लापरवाही सिर्फ सरफेस वाटर तक सीमित न होकर ग्राउंड वाटर तक को प्रभावित कर रही है परंतु विभाग इससे भी नजरे चुरा कर बैठा है। मृदा प्रदूषण भी अछूती नहीं है कॉल परिवहन एक तरफ जहां वायु को प्रदूषित करता है। तो वहीं दूसरी तरफ कॉल परिवहन से गिरने वाले कोयले के कारण लगातार मृदा भी प्रदूषित हो रही है। गोरबी क्षेत्र में स्थित महावीर कोलवाशरी ने किसानों की जमीनों पर किस कदर कहर ढाया है। उसका नजारा पूर्व की खबरों में भी साफ तौर पर देखा गया है। जिन जमीनों पर कभी फसलें उगा करती थी आज वहां की मिट्टी कोयले की परख के कारण काली पड़ चुकी है। अब कोयले एवं अन्य प्रदूषक तत्वों के मिल जाने के कारण यह जमीन बंजर होती नजर आ रही है। परंतु जिले के जिम्मेदार इन सभी बातों से इत्तेफाक नहीं रखते हैं। अतः यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत सरकार के द्वारा जारी किए गए प्रदूषण नियंत्रण मापदंडों का पालन सिंगरौली जिले का क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण कार्यालय किस कदर कर रहा है। यह पूरी तरह से साफ है।

कागजों पर हो रहा प्रदूषण नियंत्रण

यह बात तो बिल्कुल समझ से परे है कि जिले में प्रदूषण नियंत्रण कार्यालय होने के बावजूद लगातार प्रदूषण के आंकड़ों में जिस तरह से वृद्धि देखी जा रही है। उस पर से प्रदूषण नियंत्रण कार्यालय पर उंगली उठना लाजमी है । एक तरफ प्रदूषण नियंत्रण कार्यालय की तरफ से दलीलें दी जा रही है कि विभाग के द्वारा लगातार प्रदूषण नियंत्रण के लिए समय-समय पर कार्यवाही की जाती है। एवं सभी मापदंड का पालन कंपनियों से करवाया जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ जमीनी हकीकत प्रदूषण नियंत्रण कार्यालय की दी जाने वाली दलीलों से परे है। जो इस बात की तरफ इंगित करता है। कि प्रदूषण को नियंत्रण करने को लेकर जद्दोजहद सिर्फ कागजों पर तक ही सीमित रह गई है।

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