वाराणसी। मानवीय गतिविधियों में वृद्धि और बढ़ते शहरीकरण को बिगड़ते पर्यावरण के मुख्य कारणों के तौर पर देखा जाता है, खासतौर से शहरों में, जिसके परिणाम स्वरूप पर्यावरण संरक्षण तथा पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने के लिए और अधिक एवं ठोस प्रयासों को लेकर मांग उठाई जाती हैं।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के डॉ. जय प्रकाश वर्मा और उनके शोध छात्र अर्पण मुखर्जी सहित शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा किए गए एक अध्ययन से सुझाव दिया है, कि शहरी क्षेत्रों के पारिस्थिति तंत्र को बनाए रखने के लिए शहर के पार्कों, उद्यानों या हरित क्षेत्रों की मृदा की जैव विविधता को बनाए रखना महत्वपूर्ण है। डॉ. वर्मा काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पर्यावरण और सम्पोष्य विकास संस्थान में वरिष्ठ सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं।
डॉ. वर्मा ने कहा कि शहर के पार्क और उद्यान बैक्टीरिया, कवक, प्रोटिस्ट और अकशेरूकीय सहित मिट्टी के जीवों के एक समृद्ध और विविध समुदाय को पोषित करते हैं, जिस ओर अक्सर ध्यान नहीं जाता। इस नए अध्ययन से पता चलता है कि इन मृदा जीवों की जैव विविधता शहर के पार्कों और उद्यानों के रख-रखाव और स्थिरता के लिए आवश्यक है। जब हम शहर के पार्कों के बारे में सोचते हैं, तो हम अक्सर उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली मनोरंजक सेवाओं के बारे में सोचते हैं, जो हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अहम होती हैं।
डॉ. वर्मा ने कहा कि शहर के पार्क अर्ध-प्राकृतिक वातावरण हैं और स्वस्थ और जीवंत पार्कों और उद्यानों के बेहतर रख-रखाव के लिए सभी हितधारकों व लोगों के एक बड़े प्रयास की आवश्यकता है, इस अध्ययन में 16 देशों की 56 नगर पालिकाओं के शहरी पार्कों और उद्यानों से मिट्टी के नमूने एकत्र किए गए थे। इन देशों में भारत, चीन, ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, अमेरिका, चिली, स्पेन, नाइजीरिया, स्विट्जरलैंड, स्लोवेनिया, पुर्तगाल, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, मैक्सिको, इज़राइल और एस्टोनिया शामिल हैं। अध्ययन के दौरान मिट्टी में 537 विभिन्न माइक्रोबियल फाइलोटाइप्स (माइक्रोबियल विविधता) की पहचान की गई।
सूक्ष्म जीवों के कारण ही मिट्टी को जीवित वस्तु कहा जाता है, और मिट्टी के ये सूक्ष्म जैविक गुण पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में मदद करते हैं। सूक्ष्मजीव वे हैं जो मिट्टी के गुणों और स्वास्थ्य को परिभाषित करते हैं।
डॉ. वर्मा ने कहा की बड़ी जैव विविधता वाली मिट्टी में भी अधिक जैव-भू-रासायनिक गतिविधियां होती हैं। मिट्टी के वर्गीकरण और आनुवंशिक विविधता कई पारिस्थितिक तंत्र गतिविधियों को अंजाम देती है। यह अध्ययन नवीन साक्ष्य प्रदान करता है कि मृदा का वर्गीकरण और आनुवंशिक विविधता सकारात्मक रूप से पारिस्थितिकी तंत्र कार्यों के कई आयामों के साथ सहसंबद्ध हैं, उदाहरण के लिए, शहरी पार्कों और उद्यानों में रोगजनक नियंत्रण और एंटीबायोटिक प्रतिरोध विनियमन के लिए कार्बन पृथक्करण और जल विनियमन।
डॉ. वर्मा ने बताया कि अध्ययन के निष्कर्ष अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका “नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन” में प्रकाशित हुए हैं। इस शोध को विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी), विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार, तथा इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, द्वारा वित्त पोषित किया गया था।