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न्याय दिलाने के बजाय सफ़ल किरदार को नशेबाज़ बना दिया !

सुशांत सिंह राजपूत 14 जून 2020 को मुम्बई के बांद्रा स्थित अपने घर में मृत पाए गए। सुशांत सिंह राजपूत के निधन का कारण आत्महत्या बताया गया। इसके बाद मीडिया ने देश के सभी ज्वलंत मुद्दे को दरकिनार कर सुशांत सिंह राजपूत को न्याय दिलाने के लिए महकावरेज शुरू कर दी। लेकिन, न्याय के नाम पर हफ्तों और महीनों तक हुए उन्मादी और लफ़्फ़ेबाजी से भरे समाचार कवरेज,और अचानक जन्में हितैषियों के बाद अब तक जो कुछ निकाला वह है कि सुशांत सिंह राजपूत नशेबाज थे।

सुशांत सिंह राजपूत नाम पर अभियान चलाने वालों के लिए ये बेहद मामूली सी बात हो सकती है। लेकिन जो हैजटैग जस्टिस फॉर सुशांत (#JusticeforSushant)  से चलाया गया वो अभिनेता के हत्या को लेकर था? या उनको  नशेबाज़ के रूप में स्थापित कर दागदार बनाने के लिए? हो सकता है यह मुहिम बिहार चुनाव के बाद थम भी जाए। मीडिया के स्क्रीन से यह सब गायब भी हो जाए। लेकिन क्या लोगों के ज़ेहन से सब कुछ मिट जाएगा?

सुशांत इस दुनिया में नहीं रहें और वो अपना सच नहीं बता सकते। अपने कथित मानसिक बीमारी के बावजूद,सुशांत के निजी किरदार का नशेबाज़ के रूप कहीं किसी ने या खुद उन्होने या उनके करीबियों ने उनके जीवन काल में कभी जिक्र नहीं किया। दरअसल न्याय का ढ़ोल बजाने वालों के अपने टीआरपी ,वोट और निजी स्वार्थ के उन्मादी मुहिम ने मरणोपरांत सुशांत को न्याय दिलाने के बजाय, उनपर एक गंभीर दाग़ लगा दिया कि वो एक नशेबाज़ थे। #JusticeforSushant

विडंबना तो देखिए सुशांत के नाम पर शोर मचाने वाली मीडिया,तथाकथित हितैषियों ने उनकी छवि  बिहार के मध्यमवर्गीय परिवार के सफल युवा के संघर्ष से सफलता तक पहुंचने वाले किरदार से बदल कर नशेबाज़ युवा का बना दिया। क्या यही न्याय है जिसके लिए इतना शोर हुआ?

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