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सरकार, बैंक,इंश्योरेंस और कई पब्लिक सेक्टर कंपनी की हिस्सेदारी बेचने जा रही है

By – डॉ रामेश्वर मिश्र

सोमवार 1 फरवरी 2021 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट प्रस्तुत करते समय एक घंटे अड़तालीस मिनट का समय लिया, इसमें से उन्होंने अट्ठारह मिनट प्रश्नों के जबाब के लिए लिया। उन्होंने बजट में कुछ शब्दों का काफी बार इस्तेमाल किया जैसे टैक्स एवं प्रधानमंत्री शब्द का अड़तालीस बार इस्तेमाल किया, इसी प्रकार निवेश शब्द का तेरह बार, किसान शब्द का ग्यारह बार, कृषि शब्द का बारह बार इस्तेमाल किया।

इस बजट में सरकार द्वारा आर्थिक संकट से निकलने के लिए देश की सार्वजनिक संपत्ति की नीलामी की प्रक्रिया में तेजी से बढ़ते हुए 1.75 लाख करोड़ की संपत्ति जुटाने का लक्ष्य रखा गया है।

वित्त मंत्री द्वारा स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार पेपरलेस बजट प्रस्तुत किया गया, यह नया कीर्ति बनाने में वे सफल रहीं और इसी कड़ी में इस कीर्तिमान के साथ-साथ इस बजट से कई और कीर्तिमान जुड़ गए जैसे इस नये बजट द्वारा आज तक के सबसे अधिक सरकारी उपक्रमों नीलामी की बात कही गयी है और इसी बजट में यह भी स्पष्ट किया गया है कि यह बजट पिछले 30 वर्षों में सबसे अधिक घाटे वाला है जिसमे राजकोषीय घाटा जीडीपी का 9.6 प्रतिशत है जिसके लिए सरकार को 12 लाख करोड़ का ऋण लेना पड़ेगा। इसके पहले वर्ष 1991 में सरकार का राजकोषीय घाटा जीडीपी का 5.6 प्रतिशत था।

‘एक ढाक के तीन पात ‘ यह नये बजट

भारतीय जनमानस कोरोना महामारी की जंग से लड़कर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में लगा हुआ है। ऐसे में सबको बजट से काफी उम्मीद थी लेकिन बजट में वित्त मंत्री जी एक भी कल्याणकारी घोषणा करने में असफल रहीं जिसके फलस्वरूप जनमानस के आर्थिक स्थिति में बदलाव की गुंजाइश होती। यद्यपि बजट प्रस्तुत करते समय सत्ता पक्ष द्वारा जोरदार तालियों की गड़गड़ाहट से सदन का माहौल गर्म था और इसके सकारात्मक पहलुओं को सरकार द्वारा गिनाया गया। लेकिन यह बजट आम जनमानस एवं मध्यम वर्गीय परिवार के लिए गर्माहट भरा वातावरण तैयार करने से चूक गया। भारतीय जनमानस के बीच आज भी एक कहावत विद्यमान है ‘एक ढाक के तीन पात ‘ यह नये बजट पर सटीक बैठता है जिसका पर्याय शून्य विकास को दर्शाता है। वित्त मंत्री जी का बजट इसी कहावत पर आधारित है जिसके केंद्र में आत्मनिर्भर भारत, जान है तो जहान है और विनिवेश शब्द है।

वित्त मंत्री द्वारा संसद में तीसरा बजट प्रस्तुत किया गया और प्रधानमंत्री जी द्वारा कोरोना वैश्विक समय दिए गए नारे जान है तो जहान है को ढ़ाल स्वरुप अपनाया गया और नये बजट में जो कुछ आर्थिक कटौती की गयी उसके लिए कोरोना संकट को उत्तरदायी ठहराया गया। नये बजट में सरकार ने अपनी पुरानी रणनीति निजीकरण की व्यवस्था के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दुहराया है और इस बार लगभग हर सेक्टर में भारी नीलामी की घोषणा की गयी। सरकार द्वारा पिछले वित्तीय वर्ष 2020-2021 के लिए सरकारी उपक्रमों में अपनी हिस्सेदारी बेचकर 2.1 लाख करोड़ रूपये हासिल करने का लक्ष्य था जिसको नये बजट के माध्यम से प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है।

सरकार दो सरकारी बैंकों,एक इंश्योरेंस कंपनी और कई पब्लिक सेक्टर की कंपनियों की हिस्सेदारी बेचने जा रही है।

सरकार द्वारा पिछले वित्तीय वर्ष में घोषित भारतीय जीवन बीमा निगम में अपनी हिस्सेदारी बेचने का निर्णय लिया गया था जिसको नये बजट के माध्यम से पूरा किया जाना प्रमुख उद्देश्य है। वित्त मंत्री ने अपने तीनो बजट सत्रों में विनिवेश एवं निजीकरण की योजना से धन जुटाने पर कार्य किया है जिसमे क्रमशः वित्तीय वर्ष 2018-19 के लिए 80 हजार करोड़, वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए 1.05 लाख करोड़ का लक्ष्य रखा था और इसी क्रम में नये वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए 1.75 लाख करोड़ का लक्ष्य रखा गया है। अब सरकार इस विनिवेश के लक्ष्य को पूरा करने के लिए दो सरकारी बैंकों और एक इंश्योरेंस कंपनी समेत कई पब्लिक सेक्टर की कंपनियों की हिस्सेदारी बेचने जा रही है। इसके साथ ही साथ बंदरगाह, बिजली लाइनें, रेलवे के डेडिकेटेड फेट कॉरिडोर जिसका उदघाटन प्रधानमंत्री जी ने 07 जनवरी 2021 को किया था उसके भी नीलामी की घोषणा नए बजट में की गयी है। इसके साथ ही इस नये वित्तीय वर्ष में बीपीसीएल, एयर इंडिया, कॉनकोर और सीपीएसई को निजी हाँथों में सौपने पर मुहर लग सकती है। वर्ष 2018 में वित्त मंत्रालय ने सीपीएसई एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) को पुनर्गठित किया है और इसमें सार्वजनिक क्षेत्र वाली 4 कंपनियों एनटीपीसी, एसजेवीएन, एनएलसी और एनबीसीसी के शेयरों को शामिल किया गया है। इसके अतिरिक्त सरकारी कंपनियों की अतिरिक्त जमीन की नीलामी की जायेगी, पाँच हाइवे, स्टेडियम, वेयर हॉउस आदि क्षेत्रों की भी नीलामी का निर्णय लिया गया है।

किसान आन्दोलन के लिए कुछ नया नही किया गया है।

नये बजट में सर्वसहारा वर्ग के हितों से जुड़ी महात्मा गाँधी नरेगा योजना के बजट में पिछले वित्तीय वर्ष के मुकाबले 34 प्रतिशत की कटौती की गयी जिसका घातक प्रभाव सर्वसहारा वर्ग को देखने को मिलेगा। नये बजट में दो महीने से भी अधिक समय से चल रहे किसान आन्दोलन के लिए कुछ नया नही किया गया है। विशेषज्ञों का मानना था कि नये बजट में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में 3000 रूपये तक का इजाफा देखने को मिलेगा लेकिन इसके इतर प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के बजट में भी पिछले वित्तीय वर्ष से 13 प्रतिशत की कटौती देखने को मिली। इसी क्रम में कृषि बजट में भी पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 6 प्रतिशत की कटौती की गयी है। इस प्रकार नया बजट सरकार द्वारा पिछले वित्तीय वर्ष 2020-21 के निजीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने की योजना मात्र है जिसके लिए सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर सरकारी उपक्रमों में अपनी हिस्सेदारी बेचने का निर्णय लिया गया है और इस बार के बजट में नयी कल्याणकारी योजनाओं का सर्वथा अभाव है। सरकार द्वारा आत्मनिर्भर भारत, जान है तो जहान है जैसे नारों के माध्यम से कृषक, सर्वसहारा वर्ग, आम जनमानस, मध्यम वर्गीय लोगों से मुख मोड़ने का निर्णय साफ स्पष्ट होता है जिससे आने वाले वर्षों में निजीकरण का दुष्प्रभाव आम जनमानस के साथ-साथ देश को भी झेलना पड़ेगा।

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