Mahashivratri 2023 : महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर शिव के श्रध्दालु दर्शन के लिए शिव मंदिरों और शिवालयों में जाते हैं। भारत में पौराणिक गथाओं से जुड़े ऐसे कई शिव मंदिर हैं, जिनका इतिहास काफी गहरा है। मान्यताओं के अनुसार इन मंदिरों में जाने से हर मनोकामना पूरी होती है। आपको हम एक ऐसे शिव मंदिर के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं, जो एशिया का सबसे ऊंचा मंदिर कहे जाने वाला जटोली शिव मंदिर हिमांचल के जोलन जिले में स्थित है। इस मंदिर में लगे पत्थरों को थपथपाने पर डमरू जैसी आवाज आती है। जहां महाकाल के दर्शन के लिए काफी दूर-दूर से लोग आते हैं।
क्या है मंदिर की मान्यता ?
जटोली शिव मंदिर दक्षिण-द्रविड़ शैली से बनाया गया है। जो हिमांचल प्रदेश के सोलन शहर से तकरीबन सात किमी दूर है। यहां महाशिवरात्रि के दिन दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। ऐसा कहा जाता है कि भगवान भोलेनाथ ने इस मंदिर में कुछ समय के लिए निवास किया था। उसके बाद यहां स्वामी कृष्णा परमहंस ने तपस्या की और उनके ही मार्गदर्शन पर पूरे 39 साल में मंदिर का निर्माण कराया गया। इस मंदिर को एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर माना जाता है। जटोली शिव मंदिर के भवन का निर्माण एक कला का खूबसूरत नमूना है।
जटोली मंदिर की कैसी है संरचना ?
जटोली मंदिर की संरचना के बारे में बात करें तो मंदिर का गुंबद 111 फीट ऊंचा है। जिसमें भक्तों को मंदिर की 100 सीढ़ियां चढ़कर भगवान शिव की दर्शन के लिए जाना पड़ता है। जहां मंदिर के बाहर चारों तरफ कई देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित की गई हैं। वहीं मंदिर के अंदर स्फटिक मणि शिवलिंग है। इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती जी की मूर्ति भी स्थापित है। इसके साथ ही मंदिर के ऊपरी छोर पर 11 फुट ऊंचा विशाल सोने का कलश रखा हुआ है।
त्रिशूल की प्रहार से पानी की समस्या का खात्मा
इस स्थान पर पहले पानी की काफी परेशानी थी, जिसके लिए स्वामी कृष्णानंद परमहंस ने भगवान शिव की घोर तपस्या की। जिसकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने अपने त्रिशूल से उस स्थान पर प्रहार किया और वहां से पानी निकलने लगा। उस दिन के बाद से आज तक उस जगह पर कभी भी पानी की कमी सामने नहीं आई।