मिलिए दुनिया के सबसे ख़ुशहाल 123 साल के शिवानंद बाबा से,जो इस उम्र में भी योग करते हैं।
मन च्नंगा तो कठौती में गंगा। अच्छे विचार,अच्छे कर्म और अच्छी इच्छा-शक्ति ही आपको जीवन जीने का उद्देश्य देते हैं। ये सब शब्द इस दुनिया के सबसे बूढ़े होने का दावा करने वाले व्यक्ति यानी शिवानंद बाबा के हैं।बाबा की उम्र 123 साल है, लेकिन ज़ज्बा बिलकुल किसी युवा की तरह। दिल खोलकर ज़िन्दगी जीने का नज़रिया और खुद को पहचानने के सफ़र को बाबा ने क्या खूब बताया है।
अपने एक वीडियो में बाबा ये कहते हुए नज़र आ रहे हैं कि ये कलियुग है। सभी लालची हैं।
अच्छे, विचार, अच्छे कर्म और अच्छी इच्छाशक्ति से भगवान को पाया जा सकता है। बाबा कहते हैं, अगर आप ये तीनों कर सकते हैं, तो आप भगवान को पा सकते हैं। उनका मानना है कि माइंड और बॉडी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। भगवान सर्वस्व है और आप उस सर्वस्व का अनंत बिंदु जितना भाग हैं…तो आप खुद ही भगवान हुए। ये लॉजिक है और आप इसे मना नहीं कर सकते हैं। बाब फर्राटेदार अंग्रेजी भी बोल लेते हैं।
बाबा कहते हैं उन्हें किसी चीज़ की इच्छा नहीं है। वीडियो में बाबा योगासन करते हुए भी नज़र आ रहे हैं। बिना किसी लाठी के सहारे वो कशी की गंगा पर नौका विहार भी करते हुए नज़र आये। बाबा ने कहा, मैं सिर्फ पृथ्वी पर सबसे बूढ़ा जिंदा व्यक्ति नहीं हूं, बल्कि सबसे खुशी व्यक्ति भी हूं।
123 साल के काशी के मशहूर संत शिवानंद पर बनी शॉर्ट फिल्म को सोशल मीडिया पर खूब पसंद किया जा रहा है। एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी ने भी उनके वीडियो को शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा कि, “सबसे खुश इंसान, शानदार और सकारात्मक विभूति हैं शिवानंद बाबा। वह 123 वर्ष के हैं और बेहतर जिंदगी के लिए वह हमारे लिए आदर्श हैं। वह एक सुखी और खूबसूरत जीवन का सबसे अच्छा मंत्र बताते हैं. बाबा मानते हैं कि अच्छे विचार और अच्छे कर्म, इच्छा रहित और समर्पित जीवन से हम ईश्वर को पा सकते हैं। इससे आपका जीवन खूबसूरत बन जाएगा.. सच में।”
दावे के अनुसार विश्व के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति शिवानंद बाबा का जन्म 8 अगस्त 1896 को श्रीहट्ट जिले के एक गरीब परिवार में हुआ था, जो अब बांग्लादेश में मौजूद है। परिवार ने आर्थिक तंगी के चलते उन्हें जय गुरूदेव को सौंप दिया था। जब 1903 में वापस अपने गांव लौट कर गये, तो पता चला कि उनके मां-बाप चल बसे. वह वापस आश्रम लौट आये और गुरूजी से दीक्षा ले ली. इसके बाद, 1977 में वृंदावन चले गये और 1971 से काशी के दुर्गाकुंड के कबीरनगर स्थित आश्रम में रहते हैं।