जनजातीय समाज प्रकृति पूजक समाज है। प्रकृति के सबसे निकटतम और श्रेष्ठ जीवन पद्धति का परिचायक, जनजातीय समाज है। उनकी जीवन पद्धति, दर्शन, सभ्यता और विरासत में प्रकृति का महत्व समाहित है। पर्यावरण की वैश्विक चुनौती का समाधान, जनजातीय समाज की जीवन सभ्यता में पारंपरिक रूप से परिलक्षित है।
यह बात उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं आयुष मंत्री इन्दर सिंह परमार ने रविवार को राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय भोपाल के नॉलेज रिसोर्स सेंटर स्थित सभागार में “जनजातीय विषय पर शोध एवं पाठ्यक्रम निर्माण हेतु” आयोजित दो दिवसीय अखिल भारतीय कार्यशाला के समापन के अवसर पर कही।
तकनीकी शिक्षा मंत्री श्री परमार ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के परिप्रेक्ष्य में प्रदेश में तीव्र गति से क्रियान्वयन हो रहा है। इस अनुक्रम में प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के पुस्तकालयों को जनजातीय समाज से जुड़े साहित्य से समृद्ध करने की आवश्यकता है।
जनजाति शोध एवं अनुशीलन केंद्र नई दिल्ली, जनजातीय अनुसंधान एवं विकास संस्था भोपाल एवं राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय भोपाल के संयुक्त तत्वाधान में दो दिवसीय कार्यशाला हुई। विभिन्न विषय विशेषज्ञों ने जनजातीय समाज से जुड़े विविध विषयों पर व्यापक विचार विमर्श किया। कार्यशाला के प्रथम दिवस जनजातीय समाज की अस्मिता, अस्तित्व और विकास पर व्यापक चर्चा हुई और द्वितीय दिवस पाठ्यक्रम निर्माण को लेकर विचार मंथन हुआ।