Navaratri : नवरात्रि में बकरे की बलि देकर माँ को भक्त करते है प्रसन्न।
- 1500 ई. पूर्व बना मंदिर बना आस्था का केंद्र,
- बीरबल ने पाई यही से सिद्धि।
- नवरात्रि में बकरे की बलि देकर माँ को भक्त करते है प्रसन्न।
सीधी जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर बीरबल की जन्म स्थली घोघरा देवी के दर्शन के लिए दूर-दूर से भक्त पहुंच रहे है। कई मायनों में यह मंदिर खास हो जाता है क्योंकि यहां अकबर के नवरत्नों में से एक राजा बीरबल की जन्मस्थली है और इन्हीं माता की वजह से उन्हें सिद्धि प्राप्त हुई थी। चैत्र नवरात्र शुरू होते ही यहां पर भक्तों की आस्था टूट पड़ती है ।
बीरबल की जन्म स्थली घोघरा
ऐसी किदवंतिया हैं कि ग्राम घोघरा में अकबर के नौ रत्नों में से एक बीरबल का जन्म हुआ था तथा माता घोघरा चंद्रिका देवी के आशीर्वाद से उन्हें सिद्धि प्राप्त हुई थी उन्हीं के आशीर्वाद से उन्हें कुशाग्र बुद्धि प्राप्त हुई थी तथा उन्हें अकबर के नौ रत्नों में से एक शामिल होने का अवसर मिला था जिसके कारण वह पूरी दुनिया में घोघरा गांव तथा माता चंद्रिका के नाम को रोशन किया।
सूर्योदय से पहले माता चंद्रिका को चढ़ाते थे जल
कहा जाता है कि बालकाल से ही बीरबल माता चंद्रिका के भक्त थे तथा वे पहाड़ के नीचे वह रही रेही एवं सोन नदी के जल से सूर्योदय से पहले ही माता चंद्रिका को जल चढ़ाते थे उनके इस सेवा से खुश होकर माता ने उन्हें आशीर्वाद दिया था जिसके बाद उनको प्रसिद्धि मिली।
यादव परिवार में हुआ था जन्म
गांव के लोग बताते हैं बीरबल का जन्म घोघरा गांव के गरीब घर यादव परिवार में हुआ था तथा उनके परिवार के लोग खेती किसानी का कार्य करते थे किंतु बीरबल का मन सिर्फ घोघरा देवी माता चंद्रिका के सेवा भाव में ही लगा रहता था।
बकरे की बलि देकर मां को करते हैं प्रसन्न
घोघरा में मां चंद्रिका देवी मंदिर में यूं तो लोग दर्शन करके सौभाग्य प्राप्त करते हैं लेकिन एक अलग ही मान्यता है यहां पर बकरे की बलि दी जाती है बकरे को जैसे ही स्थल पर रखा जाता है और मंत्रोच्चार किया जाता है तो बकरा अपने आप ही गिर जाता है उसके बाद अक्षत से जब मंत्रोचार का छिड़काव किया जाता है तो बकरा अपने आप उठ कर विचरण करने लगता है यह अपने आप में ही एक अनोखा संयोग है।
9 दिन का लगता है मेला
घोघरा देवी मंदिर परिसर में 9 दिनों तक लगातार मेले का आयोजन होता है जहां पर भक्त प्रतिदिन लाखों की संख्या में पहुंचते हैं और दर्शन के पश्चात मेला करते हैं।