जेर-ए-बहस बिहार चुनाव : वोट कटवा क्यों वोट लुटवा क्यों नहीं AIMIM?
By : एम. अफसर खान 'सागर'
- सेकुलरिज्म के नाम पर मुस्लिम मतों से ही क्यों है सियासी दलों को सरोकार?
- मुस्लिम कयादत से परहेज क्यों?
बिहार विधानसभा चुनाव-2020 के नतीजे आने के बाद सो-कॉल्ड सेकुलर जमातों और उनके हिमायतियों ने AIMIM नेता व सांसद असदुद्दीन ओवैसी पर वोट कटवा होने तोहमत लगाने की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए लानत भेजने का काम बखूबी कर रहे हैं! भारतीय लोकतंत्र ने सभी राजनीतिक दलों को चुनाव लड़ने का अधिकार दे रखा है! जिसके तहत राष्ट्रीय व क्षेत्रीय दल राज्य विधानसभाओं व लोकसभा के लिए अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारते हैं और जनता उन्हें चुनती है या खारिज कर देती है! ठीक उसी तरह इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों ने प्रतिभा किया और जनता ने अपना फैसला वोट के जरिये सुनाया।
एनडीए गठबंधन को बहुमत मिलने के बाद विपक्ष और उसके हिमायती AIMIM और उसके नेता को वोट कटवा और भाजपा का एजेंट की संज्ञा देते फिर रहे हैं! सवाल उठता है कि आखिर हर बार विपक्ष अपनी विफलता का ठीकरा असदुद्दीन ओवैसी पर ही क्यों फोड़ती है? आखिर असदुद्दीन ओवैसी ही भाजपा के एजेंट कैसे हो जाते हैं? पड़ताल करें तो आसानी से मालूम होगा कि #aimimbihar के चुनाव लड़ने मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण से इनकी दाल नहीं गल पाती है। अगर बात सेकुलरिज्म की करें तो 2015 के चुनाव में नीतीश कुमार के जेडीयू के साथ लालू यादव की पार्टी आरजेडी व कांग्रेस ने मिल कर चुनाव लड़ा व जीता भी मगर नीतीश कुमार ने पलटी मारते हुए भाजपा संग सरकार बना लिया। 2015 से पहले भी नीतीश कुमार भाजपा के साथ रह चुके हैं। महाराष्ट्र में कांग्रेस ने शिवसेना के खिलाफ चुनाव लड़कर उसी के साथ सरकार में है! ऐसे में वो महागठबंधन में आये तो दाग धूल जाते हैं और असदुद्दीन ओवैसी एजेंट हो जाते हैं! असदुद्दीन ओवैसी ने एक इंटरव्यू में कहा कि उनकी पार्टी ने इस बार महागठबंधन में शामिल होने की कोशिश किया मगर उसे नजर अंदाज कर दिया गया। तो एक राजनैतिक दल होने के नाते उन्होंने चुनाव लड़ा और 5 सीटों पर कामयाब रहे। जीतन राम मांझी और मुकेश साहनी की पार्टीयों ने भी 4-4 सीटें जीती तो ओवैसी कैसे वोट कटवा हुए, वोट लुटवा क्यों नहीं?
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क्या लोकतांत्रिक देश में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी को चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं है? अगर इस मुल्क में नरेन्द्र मोदी, योगी आदित्यनाथ, गिरिराज सिंह, साक्षी महाराज, कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर को चुनाव लड़ने और लड़ाने का अधिकार है तो फिर असदुद्दीन ओवैसी को क्यों नहीं? तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव, मायावती, चिराग पासवान, जीतनराम मांझी, मुकेश साहनी सरीखों को चुनाव लड़ने-लड़ाने का अधिकार है तो फिर असदुद्दीन ओवैसी क्यों नहीं चुनाव लड़-लड़ा सकते हैं? आप असदुद्दीन ओवैसी के सियासी नजरिए से भले इत्तेफाक न रखते हों मगर एक दल के नाते उन्हें चुनाव में शामिल होने और गठबंधन करने से सिर्फ इसलिए कि सेकुलर वोट के बिखराव के नाम पर नहीं रोक सकते!
असदुद्दीन ओवैसी सीमांचल के मुस्लिम वोटरों को समझाने में शायद कामयाब रहे कि धार्मिक व जातीय गोलबंदी के जरिये सियासत करने वाले दलों ने सेकुलरिज्म के नाम पर मुस्लिम वोटों की फसल बहुत काटी है मगर मुस्लिमों को सियासी भागीदारी उतनी नहीं मिली जितनी मिलनी चाहिए! मुस्लिम कयादत भी उन्हें मंजूर नहीं! बिहार में अगर देखा जाए तो AIMIM ने 20 सीटों पर प्रत्याशी उतारे जिसमें 5 जीते, 9 जगहों पर महागठबंधन और 6 पर एनडीए की जीत हुई जबकि 70 सीट पर कांग्रेस चुनाव लड़ी 19 प्रत्याशी जीते बाकी एनडीए गठबंधन! कांग्रेस नेता ऋषि मिश्रा ने खुद आरोप लगाया कि “अध्यक्ष मदन मोहन झा के वजह से आज हमारी सरकार नहीं बनी। 40 वर्षों से आप मिथिलांचल में राजनीति कर रहें। RJD ने आपको 70 सीट दी और आप 19 सीट ही जीतें, आप से अच्छा प्रदर्शन लेफ्ट पार्टी करती है। मेरा सोनिया जी से निवेदन है कि आप हम कांग्रेसियों को बचा लीजिए।”
ऐसे में यह कहना कि असदुद्दीन ओवैसी वोट कटवा हैं मेरे हिसाब से ठीक नहीं बल्कि बिहार में ओवैसी वोट लुटवा साबित हुए हैं! यही सवाल कांग्रेस से भी होनी चाहिए कि मध्य प्रदेश और गुजरात के उपचुनाव के परिणाम क्या हैं जबकि ओवैसी की पार्टी ने वहां चुनाव भी नहीं लड़े? राष्ट्रीय स्तर पर सियासत में मुस्लिम कयादत के खाली जगह को भरने की कोशिश असदुद्दीन ओवैसी पूरे दमखम के साथ करने में जुटे हैं। जिससे मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण से विपक्षी दलों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। ऐसे में यह देखना है कि AIMIM बंगाल और उत्तर प्रदेश के आम चुनाव में क्या गुल खिलाती है?