दीपावली के दूसरे दिन क्यों होता है मौत का खेल !
मध्यप्रदेश के उज्जैन अलग-अलग परम्पराओं से सजा हुआ गुलदशता है। लेकिन बड़नगर के ग्राम भिडावद में ऐसी वर्षों पुरानी खतरनाक परंपरा आज भी निभाई जा रही है।जिसे सुनकर आप दंग रह जाएंगे। उज्जैन में स्थित कुछ गांवों में सुबह गायों का पूजन किया जाता है। इसके बाद लोग जमीन पर लेटते हैं और उनके ऊपर से गायों को दौड़ा दिया जाता है। इससे उन्हें काफी चोट भी पहुंचती है लेकिन आज तक कोई बड़ी दुर्घटना नहीं हुई है।
मनोकामना के लिए मौत का खेल
लोगों का मानना है कि ऐसा करने से उनकी मनोकामना पूरी होती है। मान्यता है कि गाय में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है। गायों के पैरों के नीचे आने से देवताओं का आशीर्वाद मिलता है। इस परंपरा को निभाने के लिए लोग पांच दिन तक उपवास रखते हैं। दीपावली के एक दिन पहले लोग गांव के माता मंदिर में रात गुजारते हैं। भजन कीर्तन होता है। पड़वा की सुबह गौरी पूजन किया जाता है। उसके बाद ढोल-बाजे के साथ गांव की परिक्रमा की जाती है। गांव की सभी गायों को मैदान में एकत्रित किया जाता है। दूसरी तरफ लोग जमीन पर लेटते हैं, फिर शुरू होता है परंपरा के नाम पर मौत का खेल। सैंकड़ों गायें इन लोगों को रौंदती हुई निकलती हैं। इसके बाद मन्नत मांगने वाले लोग खड़े होकर ढोल-ताशों की धुन पर नाचने लगते हैं।