MOTIVATIONAL STORY : मायूस ज़िंदगी में रौशनी बिखेरता नौजवान प्रोफेसर
एक व्यक्ति जो कुछ महीने पहले तक मंदिरों के बाहर और रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म्स पर भिखारी की तरह ज़िंदगी गुजर बसर कर रहा था।आज उसकी ज़िंदगी पूरी तरह बदल चुका है,अब वह चाय दुकान का मालिक है।इस बदलाव के पीछे एक युवा प्रोफेसर की नायाब सोंच और उसका दृढ़ संकल्प है। कहानी नहीं एक हक़ीक़त है।
भिखारी से चाय दुकान के मालिक बने के वेंकट रमन ने मीडिया से बात करते समय कहा,“लॉकडाउन की शुरुआत में उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया, जब कॉलेज के युवा प्रोफेसर ने उन्हें एक मंदिर के पास भोजन बांटते वक़्त बात की। पहले “मैं एक शराबी था,मेरी पत्नी, माता-पिता, मेरे बेटे ने मुझ से हार मान ली थी।”
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कौन है वह युवा प्रोफेसर
प्रोफ़ेसर पी.नवीन कुमार पिछले 6 साल से जेकेकेएन कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी में पढाते हैं। वो सड़कों पर रहने वाले भिखारी और बेसहारा लोगों का पुनर्वास का कार्य कर रहे हैं। उन्हें इस काम के लिए 2015 में युवा मामलों के मंत्रालय द्वारा सेवा के लिए सम्मानित किया गया।
“मेरे पिता विकलांग हैं और मेरी मां बिस्तर पर पड़ी है, इसलिए मुझे पता है कि पैसे न होने की स्थिति में भूख क्या होती है।”-प्रोफ़ेसर पी.नवीन कुमार
भीख के पैसे से मंगई चाय में घुले अपनत्व ने नया मकसद दे दिया।
साल 2014 की बात है। राजशेखर सेलम में भीख मांग रहे थे। नवीन ने उनसे संवाद कायम करने की कोशिश की, मगर राजशेखर कुछ भी बोलने को तैयार न थे। लेकिन नवीन ने भी हार नहीं मानी। लगभग 22 दिनों की कोशिशों के बाद राजशेखर ने जब अपनी कहानी सुनाई वह बेहद दर्दनाक थी। एक दुर्घटना में पत्नी और बेटे को गंवा चुके राजशेखर के सारे पहचानपत्र भी गुम हो गए थे। वह सेलम में काम तलाशने आए थे, मगर बगैर पहचानपत्र के उन्हें किसी ने कोई काम नही दिया। जो भी मिला, बस चंद सिक्के थमा दिए। हताश राजशेखर कब शराब के लती हो गए, पता न चला और फिर हाथ सड़क पर फैलते रहे,आंखें भीख देने वाले के आगे झुकती चली गईं।
बातचीत करते नवीन ने राजशेखर के साथ शाम के तीन घंटे बिताए। अपनी भीख के पैसे से राजशेखर ने उनके लिए चाय मंगाई और उस चाय में घुले अपनत्व ने नवीन के जीवन को नया मकसद दे दिया। काफी कोशिश करने के बाद उन्हें राजशेखर के लिए एक ‘चिल्डे्रन होम’ में वॉचमैन की नौकरी मिल गई। इस कामयाबी से नवीन के मकसद को नई उड़ान मिली।
कैसे शुरू हुआ भिखारियों के पुनर्वास का कार्य
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यह तब शुरू हुआ जब प्रोफ़ेसर पी.नवीन कुमारअपनी इंजीनियरिंग की डिग्री कर रहे थे।प्रोफ़ेसर बताते हैं मेरे पास रात के खाने के लिए सिर्फ 10 रुपये ही रहता था, मैंने खाना खाने के लिए सड़क के किनारे स्टॉल पर जाता और इस दौरान मेरी मुलाकात भिखारियों से होती थी। कभी-कभी भिखारी उनसे पैसे मांगने आते थे, इसलिए वह उन्हें रात का खाना खरीद कर दे देते और खुद भूखे सो जाते थे।”
भिखारियों से बात करते समय कई तथ्यों का पता चला “कुछ भिखारी ऐसे व्यवसायी निकले, जो अपना सब कुछ गंवा चुके थे, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों वाले लोग, जिन्हें परिवारों ने अलग कर दिया था, बुजुर्गों को उनके परिवारों द्वारा निकाल दिया गया था।”
इन बेसहारों के मदद के लिए 2014 में प्रोफ़ेसर पी.नवीन कुमार अपने कुछ क्लासमेट्स के साथ मिलकर आचार्यम ट्रस्ट की स्थापना की।भिखारियों की हिस्ट्री डिटेल्स लॉग इन करते हैं और फिर उन्हें भोजन, आश्रय, कपड़े के चार सेट दे कर पुनर्वास करते हैं।
2016 के बाद से, अपने वेतन, छोटे दान और आचार्यम ट्रस्ट के माध्यम से 18 जिलों में 400 स्वयंसेवकों की एक टीम के साथ, नवीन ने 572 भिखारियों को पुनर्स्थापित किया और 5,000 से अधिक का पुनर्वास किया।