पांडवों का वंशज : क्यों कांटों की सेज पर लेटकर आस्था, सच्चाई और भक्ति की परीक्षा देते हैं?
मध्य प्रदेश में आस्था के नाम पर जिंदगी से खिलवाड़ करने वाला खेल खेला जा रहा है। अपनी मन्नत पूरी कराने और देवी को खुश करने के लिए खुद को पांडवों का वंशज कहने वाले रज्जड़ समाज के लोग कांटों की सेज पर लेटते हैं।
बैतूल जिला के सेहरा गांव में हर साल अगहन मास में रज्जड़ समाज के लोग द्वारा यह परंपरा निभाया जाता है। इन लोगों का कहना है कि हम पांडवों के वंशज हैं। पांडवों ने कुछ इसी तरह से कांटों पर लेटकर सत्य की परीक्षा दी थी। इसलिए रज्जड़ समाज इस परंपरा को सालों से निभाता आ रहा ह। इन लोगों का मानना है कि कांटों की सेज पर लेटकर वो अपनी आस्था, सच्चाई और भक्ति की परीक्षा देते हैं। ऐसा करने से भगवान खुश होते हैं और उनकी मनोकामना भी पूरी होती है।
अगहन मास के दिन पूजा करने के बाद रज्जड़ समाज के ये लोग नुकीले कांटों की टहनियां तोड़कर लाते हैं। फिर उन टहनियों की पूजा की जाती है। इसके बाद एक-एक करके ये लोग नंगे बदन इन कांटों पर लेटकर सत्य और भक्ति का परिचय देते हैं।
क्या है इस मान्यता के पीछे कि कहानी
बताया जाता है की पानी के लिए भटक पांडवों को जंगल में नाहल समुदाय का एक व्यक्ति दिखाई दिया। पांडवों ने उस नाहल से पूछा कि इन जंगलों में पानी कहां मिलेगा, लेकिन नाहल ने पानी का स्रोत बताने से पहले पांडवों के सामने एक शर्त रख दी। नाहल ने कहा कि, पानी का स्रोत बताने के बाद उनको अपनी बहन की शादी नाहल से करानी होगी।
हालांकि, यह बात किसी से छुपी नहीं है कि पांडवों को कोई बहन नहीं है। इस पर पांडवों ने एक भोंदई नाम की लड़की को अपनी बहन बना लिया और पूरे रीति-रिवाजों से उसकी शादी नाहल के साथ करा दी। विदाई के वक्त नाहल ने पांडवों को कांटों पर लेटकर अपने सच्चे होने की परीक्षा देने को कहा। इस पर सभी पांडव एक-एक कर कांटों पर लेट गए और खुशी-खुशी अपनी बहन को नाहल के साथ विदा किया।
इसी परंपरा को निभाते हुए खुद को पांडव समाज का बताने वाले रज्जड़ समाज के लोग कांटों पर लेटकर परीक्षा देते हैं। इस परंपरा को निभाते समय समाज के लोगों में खासा उत्साह रहता है। ऐसा करके वे अपनी बहन को ससुराल विदा करने का जश्न मनाते हैं। यह कार्यक्रम पांच दिन तक चलता है और आखिरी दिन कांटों की सेज पर लेटकर इस परंपरा का समापन होता है।