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Holi : ऐसी मनती थी बादशाहों की होली…

  • बादशाह अपनी बेगमों और हरम की सुंदरियों के साथ होली (Holi) खेलते थे।

Holi 2023 : होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय और नेपालीयों का त्यौहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। सनातन धर्म में होली (Holi) पर्व का विशेष महत्व है जिसे धूलिवंदन के नाम से जाना जाता है। इस त्यौहार को विश्व में दो दिन मनाया जाता है और इसे भगवान श्री कृष्ण की नगरी ब्रज में 40 दिनों तक बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाता है।

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यह त्यौहार फाल्गुन मास के पूर्णिमा की रात बुराई पर अच्छाई की जीत पर होलिका-दहन होने के बाद उसके अगले दिन ढोल पूर्णिमा पर सभी लोग रंग व अबीर-गुलाल की होली (Holi) खेलते हैं। इस पर्व को मुगलकाल में भी विभिन्न बादशाह अपने-अपने तरीके से मनाते थे। यह रंगों की होली (Holi) आपसी भाईचारे और सौहार्द का संदेश देती है। इस वर्ष होलिका-दहन 7 मार्च और रंगों की होली (Holi) का पर्व 8 मार्च 2023 को मनाया जायेगा।

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हिन्दू ही नहीं बल्कि मुस्लिम भी मनाते हैं होली (Holi)

भारत का प्राचीन त्यौहार होली (Holi) है जो किसी समय होलिका या होलाका नाम से मनाया जाता था. इतिहासकारों की मानें तो होली (Holi) त्यौहार का प्रचलन आर्या में था, लेकिन यह आमतौर पर पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था। प्राचीन धार्मिक पुस्तकों जैमिनी के पूर्व मीमांसा-सूत्र, कथा गार्ह्य-सूत्र, नारद पुराण औऱ भविष्य पुराण आदि की प्राचीन हस्तलिपियों और ग्रंथों में होली पर्व के संदर्भ में काफी कुछ उल्लेखित है।

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इसके अलावा विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ स्थान पर स्थित ईसा से 300 वर्ष पुराने एक अभिलेख में भी होली पर्व का उल्लेख है। सुप्रसिद्ध मुस्लिम पर्यटक अलबरूनी ने अपने ऐतिहासिक यात्रा संस्मरण में होलिकोत्सव का वर्णन किया है। भारत के अनेक मुस्लिम कवियों ने अपनी रचनाओं में होली (Holi) के महत्व का उल्लेख किया है। इतिहास में अंकित होली की तस्वीरें बताती हैं कि इस पर्व को हिंदू ही नहीं मुसलमान भी मनाते थे।

ऐसी मनती थी बादशाहों की होली…

प्राचीन इतिहास के अनुसार होली के पर्व में मुगल बादशाहों ने भी सबसे पहले इस त्यौहार के प्रति अपनी भूमिका का निर्वाह किया है। आपको बता दें की अकबर, हुमायूँ, जहाँगीर, शाहजहाँ और बहादुर शाह ज़फर होली त्यौहार के पहले ही रंगोत्सव की तैयारियां शुरू करवा देते थे।

जिसमें अकबर के महल में सोने चांदी के बड़े-बड़े बर्तनों में केवड़े और केसर से युक्त टेसू का रंग घोला जाता था और बादशाह अपनी बेगमों और हरम की सुंदरियों के साथ होली (Holi) खेलते थे। शाम के समय में मुशायरे, कव्वालियों और नृत्य-गानों की महफ़िलें जमती थीं, इस दरम्यान सेवकों द्वारा महल में उपस्थित मेहमानों को ठंडाई, मिठाई और पान इलायची से स्वागत किया जाता था।

किसके शासन कल में होली (Holi) पर रहती थी खुली छूट ?

जहांगीर के शासन काल में महफि़ल-ए-होली का जश्न आयोजित किया जाता था। उन्होंने अपने राज्य में इस दिन आम आदमी भी उनके साथ होली (Holi) खेल सकता है इसके लिए वो खुली छूट रखते थे। शाहजहां होली के त्यौहार को गुलाबी ईद के रूप में मनाते थे और बहादुर शाह जफर को रंगों की होली खेलने का बहुत शौक था।

मुगलों के शासन काल में होली (Holi) के अवसर पर यमुना नदी के तट पर लाल किले के पीछे आम के बाग में मेले लगते थे। इतिहास में वर्णित है कि शाहजहां के शासन काल में होली को ईद-ए-गुलाब या आब-ए-पाशी अर्थात रंगों की बौछार कहा जाता था।

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