- प्रबंध निदेशक ने निदेशक (का.प्र. एवं प्रशासन) को बनाया था मामले का जांच अधिकारी
- शासन के आदेश को ताक पर रखकर हुआ था एक दर्जन से ज्यादा लिपिकों स्थानांतरण
- बिजली विभाग के मुख्य अभियंता पर शासन की नीतियां नहीं होती हैं लागू
Varanasi News: सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जीरो टॉलरेंस वाली नीति को पलीता लगाने वाले बिजली विभाग के अधिकारी मजे में हैं, अधिकारी मस्त हैं कर्मचारी त्रस्त हैं। दरअसल मामला करीब एक दर्जन से अधिक लिपिकों के स्थानांतरण मामले में प्रवंध निदेशक पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लि. वाराणसी ने जांच शेष कुमार बघेल निदेशक (का.प्र. एवं प्रशासन) पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लि. वाराणसी को दिया था। यहां बताना आवश्यक हैं कि 7 जनवरी को शेष कुमार बघेल अपने पद निदेशक (का.प्र. एवं प्रशासन) से मुक्त हो रहे हैं। लेकिन प्रबंध निदेशक के निर्देश के बावजूद महीनों बीतने के बाद भी निदेशक (का.प्र. एवं प्रशासन) शेष कुमार बघेल जांच पूरी नहीं कर सके। महीनों बाद भी जांच पूरी नहीं करना या जांच कर रिपोर्ट प्रबंध निदेशक को नहीं देने से निदेशक (का.प्र. एवं प्रशासन) की मंशा पर सवाल उठना लाजमी है, क्यों कि ये बिजली विभाग है साहब। सूत्र बताते हैं कि इस विभाग में नीचे से उपर तक धन का बंदर बांट होता है।
शासन का शासनादेश एवं निगम का स्थानांतरण आदेश नहीं मानते पूर्वांचल विद्युत के मुख्य अभियंता (वितरण) वाराणसी
पिछले साल 30 जुलाई 22 को मुख्य अभियंता (वितरण) वाराणसी ने 30 जून को स्थानांतरण सत्र समाप्त हो जाने के एक माह बाद बिना विभागीय मंत्री या अध्यक्ष उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लि. से बिना अनुमति लिए एक दर्जन से ज्यादा समूह “ग” के कार्मिकों का स्थानांतरण आदेश निर्गत कर दिया था।
कार्मिकों का स्थानांतरण आदेश निर्गत के बाद जब मुख्य अभियंता (वितरण) वाराणसी से पत्रकारों द्वारा बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि उन पर शासन की नीतियां लागू नहीं होती हैं, वह केवल पावर कारपोरेशन के आदेश को ही मानते हैं, और प्रशासनिक आदेश तो कभी भी किए जा सकते हैं।
यह खबर वाराणसी से प्रकाशित होने वाले कई समाचार पत्रों में मुख्य अभियंता (वितरण) वाराणसी द्वारा एक दर्जन से ज्यादा लिपिकों के स्थानांतरण किए जाने का मामला प्रकाशित हुआ था।
उत्तर प्रदेश शासन द्वारा अधिकारियों एवं कर्मचारियों के स्थानांतरण नीति वर्ष 2022-23, 15 जून 22 को निर्गत की गई थी, जिसकी अवधि 30 जून 22 को समाप्त हो गईं। उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन द्वारा अलग से 30 जून 2019 के बाद कोई भी स्थानांतरण नीति निर्गत नहीं किया गया।
क्या है उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष का मत
इस मामले में उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष का साफ मत है कि “शासन द्वारा स्थानांतरण नीति निर्गत किए जाने के पश्चात पावर कारपोरेशन द्वारा अलग से नीति निर्गत करने का कोई औचित्य नहीं है। और पावर कारपोरेशन अथवा पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम मुख्यालय द्वारा निर्गत स्थानांतरण नीति के अनुपालन में ही सभी स्थानांतरण आदेश निर्गत किए हैं।” उन्होंने कहा कि स्थानांतरण सत्र समाप्त हो जाने के एक माह पश्चात पिछले 30 जुलाई को मुख्य अभियंता (वितरण) वाराणसी क्षेत्र, वाराणसी द्वारा प्रशासनिक आधार को दर्शाते हुए एक दर्जन से ज्यादा लिपिकों के स्थानांतरण आदेश निर्गत किए गए हैं, ये सोच से परे हैं।
क्या है शासन की स्थानांतरण नीति
स्थानांतरण नीति वर्ष 2022-23 में स्पष्ट रूप से बिंदु संख्या 8 पर अंकित है, कि यदि किसी विभाग द्वारा विभाग की विशिष्ट आवश्यकताओं यथा स्थानांतरण समय में परिवर्तन भौगोलिक आवश्यकताओं अथवा किसी विशिष्ट योजना के संदर्भ में स्थानांतरण नीति में कोई परिवर्तन अपेक्षित हो तो विभागीय मंत्री के माध्यम से मुख्यमंत्री का अनुमोदन प्राप्त कर लिया जाए। लेकिन स्थानांतरण सत्र समाप्त हो जाने के पश्चात मुख्य अभियंता ने न तो विभागीय मंत्री से अनुमति लिया, ना ही अध्यक्ष उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लि. से मुख्य अभियंता (वितरण) वाराणसी ने ऐसा करना उचित समझा।
पत्रकारों के सवाल पर मुख्य अभियंता (वितरण) ने क्या कहा
जब पत्रकारों ने इस संबंध में मुख्य अभियंता (वितरण) वाराणसी से पूछा तो उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि “उन पर शासन की नीतियां लागू नहीं होती, वे केवल कारपोरेशन के आदेश को ही मानते हैं, और प्रशासनिक आधार पर स्थानांतरण तो कभी भी किया जा सकता है।“
अब सवाल ये है कि क्या मुख्य अभियंता पर शासन की नीतियां लागू नहीं होती हैं?
क्या उत्तर प्रदेश सरकार के अंतर्गत कार्य करने वाली सभी संस्थाएं/विभाग शासनादेश के अनुसार कार्य नहीं करती हैं?
क्या मुख्य अभियंता वितरण वाराणसी का जब मन करे वे प्रशासनिक आधार पर होने वाले स्थानांतरण कर सकते हैं?
क्या उच्चाधिकारियों द्वारा प्रेषित जाँच हाथी के दिखने वाले दाँत होते हैं? इस प्रकार के कई यक्ष प्रश्न हैं।