- बिना कार्यकारिणी के किसी कुलपति का कार्यकाल समाप्त होना बीएचयू के इतिहास में पहली घटना -हरिकेष बहादुर सिंह
- एक्ट के अनुसार यदि कार्यकारणी परिषद अनुमोदन नहीं करती है, तो सारी नियुक्ति स्वतं अवैध घोषित हो जाएंगे।
वाराणसी। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुधीर कुमार जैन अपने प्रभाव का गलत इस्तेमाल करके कार्यकारिणी परिषद का गठन नहीं होने दिये और उसके आड़ में प्रो. जैन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय एक्ट का दुरुपयोग किये और कार्यकारिणी परिषद के जूरिडिक्शन पावर को अधिग्रहित कर स्वयं निर्णय करने तथा करवाने में संबंधित अधिकारियों और कर्मचारियों का अहम भूमिका अदा किए और करवाए। जबकि किसी भी लोक सेवक को पारित संविधान के कानूनों का पालन करना और करवाना ही मुख्य उद्देश्य होता है, ना कि उसका दुरुपयोग करना। प्रो. जैन एक ऐसा माहौल बनाए, और उनके उस प्रभाव में शिक्षा मंत्रालय और यूजीसी ने उनके गलत नीतियों को कभी रोकने का साहस नहीं किया, ऐसा कहना हैं अधिवक्ता हरिकेष बहादुर सिंह का।
अधिवक्ता हरिकेष बहादुर सिंह का कहना हैं कि इस संबंध में कई बार शिक्षा मंत्रालय और यूजीसी को पत्र भेजा गया, किन्तु विभागीय मंत्री व सचिव, प्रो. जैन के आगे बौवना साबित हुए। उन्होंने बताया कि शिक्षा मंत्रालय ने कुछ विद्वान व कुछ संघ के लोगों को कार्यकारिणी परिषद के सदस्य हेतु नाम प्रस्तावित किया था, किन्तु प्रो. जैन की मनसा गलत कार्य करने का था, इसलिए मंत्रालय के द्वारा चिन्हित सदस्य को लेने से मना कर दिए, और दबाव बनाने लगे की जो सूची मेरे द्वारा भेजा जाए उसे ही कार्यकारिणी का सदस्य बनाया जाये, परंतु प्रो. जैन की सूची को शिक्षा मंत्रालय ने नहीं माना, इसी आपसी झगड़े में प्रो. जैन का कार्यकाल समाप्त होने जा रहा है, और बीएचयू के इतिहास में यह पहली घटना है, जो बिना कार्यकारिणी परिषद के किसी कुलपति का कार्यकाल पूर्ण हो जाय।
उन्होंने बताया कि प्रो. जैन अपने विकीपीडिया पर अपना बायोडाटा अपलोड किए हैं, कि दूसरी बार भी मैं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का कुलपति बन रहा हूँ। अगर यह बात भारत सरकार पहले ही प्रो. जैन को अवगत करा दिया है और तय कर लिया है, तो क्यों नियुक्ति विज्ञापन प्रक्रिया जारी कर सरकारी धन खर्च किया जा रहा है? और किस बात की सर्च कमेटी बनाई जा रही है? इससे अच्छा है कि बिना खर्च किए और समय गवांए इनको अगले कार्यकाल के लिए नए कुलपति के रूप में घोषित करा देना चाहिए।
अधिवक्ता हरिकेष बहादुर सिंह ने बताया कि जिस प्रकार से एक्ट व इमरजेंसी पावर का दुरुपयोग कर अपने लोगों को लाभांवित किए हुए हैं, यदि इनके द्वारा किए गए समस्त नियुक्ति व अन्य निर्णय जो कार्यकारिणी परिषद से होना था, एक्ट के अनुसार यदि उसे आगामी कार्यकारणी परिषद अनुमोदित नहीं करती है, तो सारी नियुक्ति स्वतं अवैध घोषित हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि प्रो. जैन कार्यकारिणी परिषद के पावर व एक्ट का जिस प्रकार दुरुपयोग किये है, वह अपराधिकृत है, इस संबंध में महामहिम राष्ट्रपति महोदया, भारत सरकार, शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से अपराधिक मुकदमा प्रो. जैन व अन्य पर चलाने के लिए अनुमति की मांग 3 माह पूर्व ईमेल के द्वारा पत्र भेजा गया था, और 3 सितंबर 24 को रजिस्टर डाक द्वारा भेजा गया था।
उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने 25 सितंबर 24 को पत्र द्वारा अवगत कराया है कि प्रो. जैन के ऊपर आपराधिक मुकदमे चलाने के मामले को विचार हेतु संबंधित प्राधिकारी को भेज दिया गया है।