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Vishwakarma Puja 2022 : विश्वकर्मा पूजा कैसे करें, जानिए शुभ मुहूर्त, मंत्र और 5 योग।

धर्म शास्त्रों में भगवान विश्वकर्मा को विश्व का निर्माता तथा देवताओं का वास्तुकार माना गया है। इन्हें दुनियां का पहला इंजीनियर और वास्तुकार मानते हुए सनातन धर्म में भी इनका विशेष महात्म्य बताया गया है। हिंदी पंचांग के अनुसार (17 सितंबर) आश्विन मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन ‘कन्या संक्रांति’ पर पड़ता है। इस दिन विश्वकर्मा पूजा भारत के कर्नाटक, असम, पश्चिमी बंगाल, बिहार, झारखण्ड, ओडिशा और त्रिपुरा आदि प्रदेशों में मनायी जाती है। यह आम तौर पर हर साल 17 सितंबर की ग्रेगोरियन तिथि को मनायी जाती है।Raksha Bandhan Songs 2022 : हिंदी सिनेमा में ये हैं रक्षाबंधन पर बने Top 5 गानें,देखिए वीडियो

इस दिन पुरे ब्रह्मांड में भी सबसे पहले इंजीनियर और शिल्पकार विश्वकर्मा जी के साथ-साथ घर के मशीनों, अस्त्र-शस्त्र और औजारों, कारखानों एवं औद्योगिक क्षेत्रों में (प्रायः शॉप फ्लोर पर) आदि में पूजा की जाती है। आज हम आपको बताते चलें की हिंदू धर्मशास्त्रों में भगवान विश्वकर्मा का महात्म्य, शुभ मुहूर्त, पूजा-विधि एवं पौराणिक कथा के बारे में जिससे लाभ होगा।

विश्वकर्मा पूजा की पौराणिक कथा

ब्रह्मा जी की धर्म नामक पत्नी के सातवें पुत्र वास्तु देव थे। वास्तु देव का विवाह अंगिरसी से हुआ और उसके बाद अंगिरसी के गर्भ से विश्वकर्मा का जन्म हुआ। पिता वास्तु देव के पद-चिन्हों पर चलते हुए विश्वकर्मा भी वास्तुकला के महान आचार्य बनें। मान्यता है कि विश्वकर्मा जी ने अपनी ही वास्तुकला से विष्णुजी का सुदर्शन चक्र, शिव जी का त्रिशूल, भगवान कृष्ण की द्वारिका नगरी, पांडवों की इंद्रप्रस्थ नगरी, पुष्पक विमान, इंद्र का वज्र एवं सोने की लंका को बनाया था। सोने की लंका के बारे में कहा जाता है कि सोने की लंका का निर्माण विश्वकर्मा जी ने ही किया लेकिन पूजा के दरम्यान रावण ने इसे दक्षिणा के रूप में मांग लिया था।Vishwakarma Puja 2022 : विश्वकर्मा पूजा कैसे करें, जानिए शुभ मुहूर्त, मंत्र और 5 योग।

मुख्य रूप से यह त्यौहार कारखानों, औद्योगिक क्षेत्रों और दुकानों में मनाया जाता है। अभियन्ता और वास्तु समुदाय द्वारा न ही बल्कि कारीगरों, शिल्पकारों, यांत्रिकी, स्मिथ, वेल्डर, द्वारा पूजा के दिन को श्रद्धापूर्वक चिह्नित किया जाता है। औद्योगिक श्रमिकों, कारखाने के श्रमिकों और अन्य वे बेहतर भविष्य, सुरक्षित कामकाजी परिस्थितियों और सबसे बढ़कर अपने-अपने क्षेत्र में सफलता एवं श्रमिक विभिन्न मशीनों के सुचारू संचालन के लिए भी प्रार्थना करते हैं।

विश्वकर्मा पूजा दिवस एक ऐसा दिन है जो एक हिंदू भगवान विश्वकर्मा दिव्य वास्तुकार के लिए उत्सव का दिन है। उन्हें स्वायंभु और विश्व का निर्माता के साथ-साथ द्वारका के पवित्र शहर का निर्माण किया जहां कृष्ण ने शासन किया, पांडवों की माया नगरी और देवताओं के लिए कई शानदार हथियारों के निर्माता थे। इन्हें निर्माणकार्ता इंजीनियर, वैज्ञानिक जगतकार्ता ईश्वर कहते हैं। विश्वकर्मा भगवान की विशेष प्रतिमाएँ सामान्यतः प्रत्येक कार्यस्थल और कारखाने में स्थापित किए जाते हैं। सभी कार्यकर्ता एक आम जगह पर इकट्ठा होकर पूजा (श्रद्धा) करते हैं। अपनी स्वेच्छा अनुसार विश्वकर्मा पूजा के तीसरे, पांचवें, सातवें दिन हर्षोल्लास के साथ सभी लोग विश्वकर्मा जी की प्रतिमा को विसर्जित करते हैं।

विश्वकर्मा पूजा के जानिए तीन शुभ मुहूर्त!

हिन्दू के विभिन्न पंचांगों के अनुसार इस वर्ष विश्वकर्मा भगवान की पूजा के 3 शुभ मुहूर्त निकलकर आ रहे हैं। आप अपनी सुविधानुसार इन तीन शुभ मुहूर्त में से किसी एक मुहूर्त पर विश्वकर्मा जी के साथ अस्त्र-शस्त्र की पूजा कर सकते हैं। विद्वानों की ऐसी मान्यता है कि इसी दिन अपने वाहन एवं मशीन की पूजा करने से ये कभी भी ऐन मौके पर धोखा नहीं देते, और इनकी आयु भी लंबी होती है।

तीन शुभ मुहूर्त

  • 07.38 A.M. से 09.12 A.M. तक
  • 01.47 P.M. से 03.21 P.M. तक
  • 03.21 P.M. से 04.51 P.M. तक

विश्वकर्मा भगवान की ऐसे करें पूजा

इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान करने के पश्चात नये या धुले हुए वस्त्र धारण करें। इसके बाद सपरिवार अपनी फैक्टरी अथवा दुकान में पहुंचकर एक चौकी पर लाल अथवा पीला वस्त्र बिछाकर उस पर गंगाजल छिड़ककर भगवान विश्वकर्मा जी की प्रतिमा स्थापित करें। उसके बाद प्रतिमा के समक्ष धूप-दीप प्रज्वलित करें. भगवान विश्वकर्मा को अक्षत, रोली का तिलक लगाएं. फल एवं मिठाई का भोगचढ़ाएं. फूल, दही, सुपारी, कलाई नारियल इत्यादि अर्पित करें। इसमें बेहतर होगा कि अस्त्र-शस्त्र, औजारों एवं मशीन आदि की पूजा किसी योग्य पुरोहित से ही करवाएं।Vishwakarma Puja

रुद्राक्ष के माले से निम्न मंत्र का 108 जाप करें।

ॐ आधार शक्तपे नम:,
ॐ कूमयि नम:,
ॐ अनन्तम नम:,
ॐ पृथिव्यै नम:

ये 5 योग इस दिन को खास बना रहे हैं

हिंदी पंचांगों के अनुसार इस वर्ष 2022 में विश्वकर्मा पूजा के दिन पांच बेहद शुभ योगों का निर्माण हो रहा है। जो 17 सितंबर को वृद्धि योग (पूरे दिन), अमृत सिद्ध योग, रवि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग (06.06 A.M. से 12.22 P.M.) तक तथा द्वि पुष्कर योग (12.22 P.M. से 02.15 P.M.) तक रहेगा. मान्यता है कि इन अति शुभ योग में होने के कारण इस समय पूजा करने से कार्य में सिद्धि मिलेगी, और दुगना फल’ प्राप्त होगा।

विश्वकर्मा का क्या वंश था ?

विश्वकर्मा ब्राह्मण जाति से भी संपर्क रखते है विश्वकर्मा पुराण के मुताबिक विश्वकर्मा जन्मों ब्राह्मण: मतलब ये जन्म से ही ब्राह्मण होते। इसे कई जातियों के लोग प्रयोग में लाते हैं जैसे कि पांचाल ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण ,शिल्पकार, करमकार इत्यादि और इन जातियों के लोग विश्वकर्मा को अपना इष्टदेवता मानते हैं। आपके मन में यह सवाल जरुर आ रहा होगा की भगवान विश्वकर्मा क्या ब्राह्मण है? विश्वकर्मा समुदाय, जिसे विश्वब्राह्मण के रूप में भी जाना जाता है, हालांकि ब्राह्मणों के साथ आम तौर पर स्वीकृत संबंध नहीं हैं।

विश्वकर्मा को शिल्पी के रूप में विशिष्ट स्थान ?

ऋषियों द्वारा कहा जाता है कि प्राचीन काल में जितनी भी राजधानियां थीं सभी विश्वकर्मा द्वारा ही बनाई गई थी। यहां तक कि सतयुग का ‘स्वर्ग लोक’, त्रेता युग की ‘लंका’, द्वापर युग की ‘द्वारिका’ और कलयुग का ‘हस्तिनापुर’ आदि विश्वकर्मा के ही रचित थे। ‘सुदामापुरी’ की तत्क्षण रचना के बारे में भी यह कहा जाता है कि उसके निर्माता भी विश्वकर्मा ही थे। इससे यह आशय लगाया जाता है कि धन-धान्य और सुख-समृद्धि की अभिलाषा रखने वाले पुरुषों को बाबा विश्वकर्मा की पूजा करना आवश्यक और मंगलदायी है। विश्वकर्मा को देवताओं के शिल्पी के रूप में विशिष्ट स्थान प्राप्त है।

भगवान विश्वकर्मा की जयंती वर्षाऋतु के अंत और शरदऋतु के शुरू में मनाए जाने की परंपरा रही है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसी दिन सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करते हैं। चूंकि सूर्य की गति अंग्रेजी तारीख से संबंधित है इसलिए कन्या संक्रांति भी प्रतिवर्ष 17 सितंंबर को पड़ती है। जैसे मकर संक्रांति अमूमन 14 जनवरी को ही पड़ती है। ठीक उसी प्रकार कन्या संक्रांति भी प्राय: 17 सितंबर को ही पड़ती है। इसलिए विश्वकर्मा जयंती भी 17 सितंबर को ही मनाई जाती है।

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