Ramadan : जानिए बरकतों के महीने रमज़ान की ख़ास बातें, सेहरी से इफ़्तार तक सबकुछ !
Ramadan : रमजान के महीने में सारे शैतान यानी बुरी ताकते कैद कर ली जाती है ताकि वह बंदों को अपने परवरदिगार (अल्लाह ) की इबादत करने से रोक ना सकें। और सब लोग दुनिया की चमक दमक को भूलकर अल्लाह ताला की इबादत में मशगूल हो जाएँ।

भारत में इस साल रमजान बुधवार, 22 मार्च, 2023 को मक्का में चांद दिखने के बाद शुरू होने की उम्मीद है। रमजान शुक्रवार, 21 अप्रैल, 2023 को खत्म होगा और शनिवार को ईद-उल-फितर मनाई जाएगी
रमज़ान इस्लामिक कैलेंडर का 9वां महीना है। साल भर के इंतजार के बाद रमज़ान का पाक(पवित्र) महीना आता है। इस महीने की बात ही कुछ और होती है।रोजा, इफ्तार,सेहरी,तरावीह यह सब रमज़ान के अरकान है। जो इस महीने को ख़ास बनाते हैं। इस महीने में इस्लाम के मानने वाले पूरे 1 महीने तक रोजा रखते हैं। जो कभी 29 तो कभी 30 दिन का होता है।
रोजे के दौरान कुछ भी खाने पीने की मनाही होती है। सुबह सूरज निकलने से पहले सेहरी का वक्त होता है। इस वक्त सारे मुसलमान भाई कुछ खाकर रोजे की नियत करते हैं। रोजे की नियत से मतलब अपने आप को रोजा रखने के लिए तैयार करना और मन में पक्का इरादा करना है।
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शाम को सूरज डूबने के बाद इफ्तार का वक़्त होता है। इस वक्त सारे लोग एक साथ में बैठकर रोजा इफ्तार करते हैं। और अल्लाह ताआला का शुक्र अदा करते हैं। कि उन्होंने अपना रोजा पूरा किया। इफ़्तार वो खाना होता है, जो रोज़ा तोड़ने के वक़्त खाया जाता है।
इसके बाद नमाज़े तरावीह अदा की जाती है।यह रमज़ान के महीने की खास नमाज़ होती है। जो पूरे महीने रोजा इफ्तार के बाद ईशा की नमाज के वक्त अदा की जाती है। इफ़्तार से लेकर सहरी के वक्त तक खाने पीने की कोई बंदिश नहीं होती।
- इस्लाम के मुताबिक रमजान के महीने को तीन हिस्सों में बांटा गया है। जिसे अशरा कहते हैं। शुरू के 10 रोजों को पहला अशरा कहते हैं। जो रहमत का होता है।
- इसके बाद के 10 रोजों को दूसरा अशरा कहते हैं। जो मग़फिरत( मोक्ष) के लिए होता है।
- और आखिरी के 10 रोजे को तीसरा अशरा कहते हैं। यह जहन्नुम से छुटकारे के लिए होता है।
रमजान के तीनों अशरों की अपनी अलग अलग अहमियत है।पर आखरी अशरे की अहमियत सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मानी जाती है।आखिरी अशरे के दौरान ही शबे कद्र की रात आती है। यूं तो रमजान का पूरा महीना ही बहुत खास होता है। पर शबे कद्र की रात उन सब में सबसे खास और अव्वल मानी जाती है। ये वो रात है जिस मे अल्लाह ताआला ने क़ुरान नाज़िल किया था। जो की आखिरी 10 रोजों की कोई भी रात हो सकती है।
इस्लाम के मुताबिक शबे कद्र की रात 21वें , 23वें, 25वें, 27वें या 29वें रात में से कोई भी एक रात हो सकती है। इन रातों में सारे मुसलमान भाई पूरी रात अल्लाह की इबादत करते हैं और अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं। और अपने लिए अल्लाह ताला से जन्नत की गुजारिश करते हैं।
इस महीने में कुरान की तिलावत (पढ़ना ) ज्यादा से ज्यादा करनी चाहिए। क्योंकि इस महीने में कुरान नाज़िल हुआ था, इसलिए इसकी तिलावत करने वालों को दुगना सवाब मिलता है।

रमजान के महीने में सारे शैतान यानी बुरी ताकते कैद कर ली जाती है ताकि वह बंदों को अपने परवरदिगार (अल्लाह ) की इबादत करने से रोक ना सकें। और सब लोग दुनिया की चमक दमक को भूलकर अल्लाह ताला की इबादत में मशगूल हो जाएँ।
रोजे के दौरान हर तरह के बुरे काम करने की मनाही होती है। किसी से लड़ना, झगड़ना, गाली देना, चुगली करना, झूठ बोलना, इन सब चीजों से रोजा टूट जाता है। इसी तरह अल्लाह के बताए हुए रास्तों पर अमल करके अल्लाह की इबादत करते हुए सारे मुसलमान भाई रमजान के तीनों अशरे मुकम्मल करते हैं।
पूरे रमजान रोजे रखने के बाद आखिर में ईद का दिन आता है। जिसे ईद उल फितर भी कहते हैं। ईद का चांद दिखने के साथ ही रोजा खत्म हो जाता है। और सब लोग ईद की तैयारियों मे जुट जाते हैं। ईद का चाँद दिखते ही सेवइयों, मिठाइयों, नए कपड़ों ,दोस्तों व रिश्तेदारों को मुबारकबाद और तोहफ़े देने का सिलसिला शुरू हो जाता है।