Home Baby Name Beauty Tips Women’s fashion Men’s Fashion Personal finance Web Storie Entertainment

गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान में बाघों का अस्तित्व संकट में

बैकुंठपुर से कमलेश शर्मा।। कोरिया जिले के अंतर्गत आने वाले गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान में बाघों की सुरक्षा खतरे में पड़ती दिख रही है।पर्याप्त संसाधनों के बावजूद पार्क कर्मचारियों की लापरवाही से बाघों के अस्तित्व पर संकट मंडराने लगा है। हद तो यह है की,पार्क के कर्मचारियों को बाघों की सही संख्या या उनके स्थान के बारे में जानकारी नहीं है। पार्क क्षेत्र के रेंजर और प्रबंधक वन्यजीव संरक्षण के लिए आवंटित धन से अपना पेट भरने में लगे हुए हैं।

पार्क क्षेत्र के अंतर्गत भोजन की कमी के कारण बाघ आबादी का रुख करते हैं। जिसके कारण जंगल के जानवरों और लोगों के बीच संघर्ष होता रहता है।समुचित मॉनिटरिंग के अभाव में हिरण और कोटरी जैसे जानवर तस्करी के साथ-साथ इंसानी निवाला बन रहे हैं। पार्क परिक्षेत्र में जिस तरह लगातार बाघों की आमद तेज होती जा रही है। और बाघों की आहार श्रृंखला की कोई मजबूत व्यवस्था नहीं है। साथ ही समस्त उद्यान क्षेत्रों में आबादी और बसाहट बराबर बनी हुई है।कुल मिलकर कह सकते हैं की बाघों की आबादी की ओर अपना रुख करना मजबूरी बन गई है।

कोरिया जिले अंतर्गत यह राष्ट्रीय उद्यान मध्यप्रदेश के कई सीमावर्ती जिलों की वन सीमा से जुड़े होने की वजह से  बड़ा कॉरिडोर जैसा है। जिसमे बाघों का विचरण काफी संख्या में और नियमित बना रहता है। और यहां पर इनके दाना पानी की व्यवस्था बहुत ही कम है। इसलिए आये दिन बाघ पार्क क्षेत्र से शहरी और ग्रामीण इलाकों में शिकार की तलाश में पहुंच जाते हैं।

गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान में बाघों का अस्तित्व संकट में

दो बाघ हो चुके शिकार, लापरवाही फिर भी बरकरार…

पार्क परिक्षेत्र में गत वर्षों में दो बाघों की मौत हो चुकी है, फिर भी पार्क प्रबंधन की लापरवाही बरकरार है। बाघ शिकार करे या शिकार हो तब पार्क प्रबंधन जागता है। लगभग 1440 स्केवॉयर किलोमीटर का गुरुघासीदास राष्ट्रीय उद्यान  है जिसके अंतर्गत बाघों का विचरण बाघों के संरक्षण और सुरक्षा के लिहाज से बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है। चूंकि इस पार्क क्षेत्र के दो तरफ की सीमा मध्यप्रदेश से पूरी तरह जुड़ी हुई और असुरक्षित भी है।

पार्क के डायरेक्टर की लापरवाही और अनुभव हीनता की वजह से पार्क का आधा संवेदनशील क्षेत्र बिलकुल कवर नहीं हो पाता है। जिन कारणों से वन्य प्राणियों के तस्कर बड़ी आसानी से शिकार कर जाते हैं। और बड़ी घटना के बाद पार्क डायरेक्टर अपनी कमी या फिर लापरवाही स्वीकार कर मामला भूल जाते हैं।

जहरखुरानी से हुई मादा बाघिन की मौत प्रबंधन की लापरवाही का बड़ा मामला था। उसके कुछ महीनो बाद एक अन्य मामले में गुरुघासीदास राष्ट्रीय उद्यान अंतर्गत उन्ही संवेदनशील वन क्षेत्र में तस्करों से बाघ की खाल और उसके अंग जप्त किए गए थे। और उस घटना में भी गुरुघासीद राष्ट्रीय उद्यान प्रबंधन की लापरवाही थी। वरना अगर पार्क के मध्यप्रदेश से लगे क्षेत्र में निगरानी रखी गई होती तो एक और बाघ बेमौत शिकार नहीं होता।

बावजूद इसके गुरुघासीदास पार्क डायरेक्टर के द्वारा इस बड़ी घटना को सूरजपुर सामान्य वन मंडल अंतर्गत बिहारपुर वन परिक्षेत्र अधिकारी को जांच और कार्यवाही इसलिए सौंप दी गई,  क्योंकि बाघ भले ही गुरुघासीदास राष्ट्रीय उद्यान से शिकार किया गया था। पर तस्करों की गिरफ्तारी सामान्य वन परिक्षेत्र के अंतर्गत की गई थी। इसलिए पार्क डायरेक्टर अपने ऊपर न लेकर समस्त कार्यवाही बिहारपुर वन परिक्षेत्र के पाले में डालकर बरी हो गए थे।

गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान में बाघों का अस्तित्व संकट में

बाघ सहित अन्य वन प्राणियों के लिए गुरुघासीदास राष्ट्रीय उद्यान व टाईगर रिजर्व बिलकुल भी सुरक्षित नहीं हैं।

अब इस बड़ी घटना के कार्यवाही की बात करें तो वन परिक्षेत्र बिहारपुर द्वारा 6 लोगों को जिन्हे बाघ खाल के साथ गिरफ्तार किया था। उन्हे विभागीय प्रक्रिया में कोर्ट चालान कर दिया गया था। जबकि बाघ खाल का मुख्य सरगना जिसका सारा हुलिया और पता 6 आरोपियों ने बताया था । बावजूद इसके बाघ खाल का असल सरगना तस्कर अब तक नहीं पकड़ा जा सका है। जिससे ये पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है की गुरुघासी दास राष्ट्रीय उद्यान में जब तक ऐसे लापरवाह संचालक और पार्क परिक्षेत्र में  रेंजर जमे हुए हैं, और अपने मूल दायित्व से हटकर सिर्फ बड़े बड़े निर्माण कार्यों के भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। ऐसे में बाघ सहित अन्य वन प्राणियों के लिए गुरुघासीदास राष्ट्रीय उद्यान व टाईगर रिजर्व बिलकुल भी सुरक्षित नहीं हैं।

बाघों का रुख अब आबादी की ओर…

पार्क परिक्षेत्र में पहले 96 चीतल व दोबारा 20 – 20 चीतल एवं नील गाय बाहर से लाकर छोड़े गए फिर बाघ शिकार के लिए आबादी की ओर रुख कर रहे हैं। आपको बता दें की एक ऐसा भी दौर था जब गुरुघासीदास राष्ट्रीय उद्यान में छोटे वन्य प्राणियों की बड़ी तादात थी। और बाघों की आमद व विचरण भी बराबर था। लेकिन बीते चार पांच वर्षों से जिस तरह पार्क प्रबंधन और इनके अधिकारी रिजर्व फॉरेस्ट की संवेदनशीलता को भूलकर सामान्य वन मंडल की तरह की गतिविधियों में शामिल हो चुके हैं। तब से गुरुघासीदास राष्ट्रीय उद्यान में छोटे बड़े वन्य प्राणियों की तस्करी तेज हो गई है। प्रबंधन द्वारा कभी भी संरक्षित वनों की सतत निगरानी नही रखी जाती। यही वजह है की बाघों की आहार श्रृंखला पूरी तरह चौपट हो चुकी है और खेप पर खेप लाए जा रहे चीतल का बाघ कम और इंसान ज्यादा शिकार कर रहे हैं।

Tiger Deaths in India Reports

बाघ विचरण के बीच पार्क में इको टूरिज्म हेतु इंडिया हाईक टीम की ट्रैकिंग…

कह सकते हैं की एक सामान्य इंसान भी एक या दो गलतियों के परिणाम से सीख ले लेता है। पर न जाने क्यूं गुरुघासीदास राष्ट्रीय उद्यान के संचालक गलती पर गलती करके गलतियों के पुतले साबित होते जा रहे हैं। अवगत करा दें की गुरूघासी दास राष्ट्रीय उद्यान जो टाईगर रिजर्व घोषित होने की अंतिम प्रक्रिया में है। या कह सकते हैं की तमाम गतिविधियां टाईगर रिजर्व की तरह संचालित भी होनी शुरू हो चुकी है। जल्द ही क्षेत्र की प्रभावित आबादी को भी विस्थापित भी किया जाएगा। बता दें की बाघ की लगातार दस्तक और आमद के बीच इको टूरिजम के संभावनाओं को तलाशना और बाघों के बीच टीम को ट्रैकिंग कराना।  

Avatar

Tauheed Raja

उर्जांचल टाईगर (राष्ट्रीय हिन्दी मासिक पत्रिका) के दैनिक न्यूज़ पोर्टल पर समाचार और विज्ञापन देने के लिए संपर्क करें। व्हाट्स ऐप नंबर -7805875468 मेल आईडी - editor@urjanchaltiger.in

Live TV